गुरू के माने शिष्य नहीं है, ‘शिष्य माने गुरू होई’। गुरू आपको अस्वीकार कर दे कुछ देने से, पर यदि आपकी भावना पूर्ण है तो आप समर्थ होंगे गुरू से सब ले लेने के लिए। सब अर्थात् सब।
A disciple is not when a Guru believes him to be but when a disciple truly believes he is a disciple only then can there be a Guru. Even if the Guru disapproves to give anything,but if your intent is absolute then you are capable of taking everything from the Guru.
आपकी और मेरी यात्रा श्री कृष्ण से मेरे कृष्ण की
ओर है, आइये स्वस्थ और प्रसन्न मन से सब के प्रति
सद्भाव रखकर आगे बढ़ें।
Our journey is from Shree Krishna to my Krishna, come let us move forward with a sound and a happy heart, with a feeling of goodwill towards all.
वृंदावन की रसोपासना केवल श्री वृंदावनेश्वरी के अनुग्रह के आश्रित है, जिस पर श्रीजी कृपा करें वो संसार की प्रतिकूल से प्रतिकूल परिस्थिति में रहकर भी इस रस की अनुभूति, आस्वादन कर सकता है।
The Rasopasana of Vrindavan relies on the grace of Shree Vrindavaneshwari, on who ever Shree ji bestows here grace they can experience this Ras, relish it, even in the most adverse circumstances.
जहाँ भी निश्छल भाव का दर्शन हो, श्रद्धा से मस्तक झुका कर विश्वास रखिए कि वहाँ प्रभु विराजमान हैं।
Wherever one sees selfless emotions, one should bow their head with reverence believing that God resides there.
वस्तुतः जीव अपनी ओर देखे तो कभी कल्याण की संभावना ही नहीं है कल्याण तो जब हुआ है तब प्रभु के स्वभाव, दया और करुणा की ओर देखकर ही हुआ है।
Actually if a being sees oneself there is no possibility of welfare so if welfare does happen it has only happened looking at the nature, kindness and compassion of God.
जब ह्रदय रूपी गोकुल में कन्हैया प्रकट हो और आप कह सकें केवल कृष्ण नहीं, मेरे कृष्ण वस्तुतः तभी नन्द उत्सव है|
When Kanhiya appears in the heart like Gokul and you don't just say Krishan but my Krishan then it is truly Nand Utsav
आध्यात्मिक रूप से जगा हुआ व्यक्ति संसार के कर्तव्यों को, संसार के व्यवहार को और सुंदर रीति से निभाता है।धर्म ही व्यक्ति को संसार में आदर्श प्रतिष्ठित करने की योग्यता देता है।
A person who is spiritual awakened carries out his worldly duties and conduct in a very graceful way. Dharma bestows the ability with which a person can establish an ideal in the world.
जब-जब प्रेम किसी को मिला है तो संत की कृपा से ही मिला है।आपके-मेरे जीवन में भी प्रभु के आगमन की सूचना अगर कभी कोई देगा तो संत ही देगा।
Whenever someone has attained love then it has been with the grace of a Saint. if there is someone to inform us about the arrival of God in our lives then that will only be a Saint .
सत्संग का वास्तविक प्रसाद है प्रभु मिलन की इच्छा ।
The actual blessing of Satsang is the desire to meet God.
मुझे प्रभु से प्रेम हो... इस इच्छा में ही इतना प्रकाश है कि मोह माया का सब अंधकार दूर हो जाए।
I may love God... this intention has so much radiance in it that it eliminates the darkness of illusion and attachment
क्या है इस समग्र अस्तित्व में सबसे सुन्दर ? प्रेम से भरा ह्रदय , गदगद वाणी एवं नेत्रों से छलकते हुए प्रेमाश्रु।
What is the most beautiful thing in this entire existence? a love filled heart, a choked voice overwhelmed with love and eyes filled with tears of love.
साधक के लिए आरम्भिक काल बहुत सुखद नहीं होता, लेकिन घबरायें नहीं, अपने गुरु की कृपा का आश्रय लेकर भगवन्नाम जपते रहें,धीरे-धीरे मन के कोलाहल को शांति के संगीत में परिवर्तित होते आप स्वयं देखेंगे।
The starting phase is not very pleasant for a Seeker, but one should not worry, take refuge of your Guru and keep chanting God's name, gradually the noise within will transform into music .
गुरु ना मिला हो तो ‘‘प्रयास’’ समझकर और मिल जाए तो ‘‘प्रसाद’’ समझकर परंतु हरिनाम निरंतर लिया जाना चाहिए।
If one has not found a Guru then thinking of it as an endeavour and if there is a Guru then think of it as a blessing, but Harinaam should continuously be taken.
अगर कुछ शाश्वत है, सनातन है, कुछ अक्षय है तो वो...केवल, केवल और केवल भगवान के भक्त और उनके हृदय में प्रतिष्ठित भगवान की भक्ति है।
If there is anything that is eternal, is everlasting, is enduring, it is only and only a devotee of God and the devotion of God established in their heart.
यदि प्रभु के प्रति निष्कपट भाव हो तो संसार का कोई भाव या संबंध आपकी आध्यात्मिक यात्रा में बाधा नहीं बन सकता..आप जहाँ हैं, जैसे हैं वहीं से अपनी यात्रा आरम्भ कर सकते हैं।
If there is a geniune emotion towards God, then no feeling or relationship in the material world can become an obstacle in the spiritual journey...wherever you are you can begin your journey from there itself.
साधक के जीवन में भोजन के साथ आँख और कान से लिए जाने वाले आहार की शुद्धि भी अति आवश्यक है।
In a Seeker's life besides what is consumed as food, that which is consumed by the eyes and ears must also be pure.
गोविन्द से गुरु मिलाता है तो गुरु से कौन मिलाता है? गोविन्द से मिलने की इच्छा ही गुरु से मिलाती हैं।
If a Guru makes one meet God then who makes one meet a Guru? the intention to meet Govind is what makes one meet a Guru